लघुकथा

नीता जिंदा है ….!

पैतृक गांव के श्मशान घाट से घर लौट कर आते समय ही रमेश का फोन बजा । उसने फोन कान से लगाया ।

दूसरी तरफ से डाक्टर की चहकती हुई आवाज आई , ” बधाई हो रमेश जी , नीता जी की दोनों आँखें (कार्निया) दो लोगों को लग गई है और वह सब कुछ देखने लगे हैं ।विशेष बात तो यह है कि जिस लड़की की आँख बनी है उसका भी नाम नीता है । उसके माता – पिता आपसे मिलकर धन्यवाद कहना चाहते हैं । आप शहर कब आएँगे ? ”

“श्राद्ध होने के बाद । डाक्टर साहब , धन्यवाद के पात्र तो आप हैं,  जो आपने सफल आपरेशन किया ।” रमेश अपने मुड़े हुए सिर को खुजलाते हुए बोला।

“मैं नहीं रमेश जी ,बल्कि आपकी पत्नी नीता जी हैं । जिन्होंने अपनी हार्ट की बीमारी जान तुरत फुरत नेत्रदान करने का फैसला कर लिया । मरते समय उनके हाथों में किसी प्रापटी के पेपर नहीं थे बल्कि नेत्रदान करने वाला सर्टिफिकेट था ।

28 वर्ष की उन महिला में अंगदान करने का ऐसा जज्बा मैंने पहली बार देखा है । ईश्वर उनकी आत्मा को सम्मान सहित अपने पास रखेगा ।”

डाक्टर ने आगे कहा , ” आप दूसरी शादी करेंगे या नहीं मुझे नहीं पता लेकिन नीता जी हम सबके लिए हमेशा जिंदा रहेंगी अपनी आँखों के जरिए …..।”

 

नीतू सुदीप्ति 'नित्या'

जन्म -- 20 - 11 - 1980 शिक्षा -- मैट्रिक प्रकाशन -- हमसफर और छंटते हुए चावल (कहानी संग्रह ) भोजपुरी में एक उपन्यास धारावाहिक रूप में प्रकाशित । देश की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में 150 रचनाएँ प्रकाशित । सोशल मिडिया -- अनुभव और मैसेंजर आफ आर्ट में रचनाएँ प्रकाशित । फेसबुक पर रचनाएँ प्रशंसित । अनुवाद -- डा. लारी आजाद की कविता और डा. जय कुमार जलज की लघुकथा का भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित । मेरी एक कहानी 'लड्डू चोर' का भोजपुरी अनुवाद गंगा प्रसाद अरुण जी के द्वारा । पुरस्कार -- कमलेश्वर स्मृति कथाबिंब पुरस्कार से एक कहानी पुरस्कृत और शुभ तारिका में चार लघुकथाएँ पुरस्कृत । सम्प्रति -- स्वतंत्र लेखन मेल -- n.sudipti @gmail.com