कविता – अग्निगीत
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जिन्हें देश को गलियाँ बकने के बदले
जनता की गाढ़ी कमाई की बरियानी
खिलाई जाती है
देश तोड़ने की धमकियां देने के बावजूद भी
कोठी कार और सुरक्षा मुहैया करवाई जाती है
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जिनके खुद के बच्चे तो विदेशों में पढ़ते हैं
और दूसरों के मासूम हाथों से किताबें छुड़ा
हथियार पकड़ा रहे हैं
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जो मुल्क की उड़ान में बधिकों की भूमिका
निभा रहे हैं
और उगती हुई कोंपलें तोड़ने में लगे हैं
और फैलते हुए परों को मरोड़ने में लगे हैं
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जिनकी हवाई यात्राएं आम आदमी की
पीठ पर होती हैं
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जो रिश्तों की उर्वरा जमीन को बंजर बनाने पर तुले हुए हैं
और जलते हुए दीये बुझाने और
फूलों को खंजर बनाने पर तुले हुए हैं
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जो प्रेम की अनुपम बगिया उजाड़ कर
नागफनियाँ उगाने में व्यस्त हैं
और सूरज के खिलाफ अंधेरों संग साजिशें रचने के अभ्यस्त हैं
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
अपनी कलम की सार्थकता के लिए और
विडम्बनाओं के खात्मे के लिए ……