लघुकथा – उत्सव
ज़मींदार करतार सिंह के बड़े बेटे के लड़का हुआ| सारा परिवार बहुत खुश था| करतार सिंह की तो बात ही अलग थी| घर में लड्डुओ के डिब्बे ला रख दिए| सब बधाई देने वालों को खाली हाथ नहीं जाने देना| ये खबर किन्नरों तक भी पहुँच गई|
किंनर बोले, “हम तो मन मर्जी मुताबिक पैसे और सामान लेकर जायेंगे|” करतार सिंह बोला, “तुम रौनक लगा दो, मन मर्जी मुताबिक लेकर जाना| घर का पहला चिराग रोशन हुआ है|” आंगन में खूब ढोल धमाका हुआ| करतार सिंह से किन्नरों ने जो माँगा उसने वही दिया| किंनर खुश हो बोले, “जब फिर लड़का होगा तो बुलाना कभी न भूलना| परिवार को भाग लगे और तेरी खुली नियत को|” करतार सिंह खुशी से बोला, “अगर मेरे घर पोती भी हुई तब भी बुलाऊंगा|” अगले साल छोटे बेटे के लड़की पैदा हुई| दादे ने उसी प्रकार खुशी मनाई और घर के आंगन में किनंरो को बुला कहा, “इस बार पिछले से भी अधिक ही दूँगा, हर बच्चा अपना भाग्य लेकर आता है| इसको खूब बड़ा यादगारी उत्सव बना दो|”
— रेखा मोहन १७/१/२०१८