हाय – हाय ये मजबूरी
मौसमी बरसात में मेढक मदारी हो गए।
दुराचारी थे रात मे, प्रातः पुजारी हो गए,
चार ही साल तो हुए ,दिखायी क्या हमने एकता ,
जालीदार टोपी पहनने वाले, मंदिर जाने को बाध्य हो गए,
मौसमी बरसात में मेढक मदारी हो गए।।
जो पहले कभी हिंदू को आतंकवादी कहते थे,
मंदिर का तो नाम सुनते ही, धू – धूकर जलते थे।
आज वे मंदिर वाले देवता, उनके आराध्य हो गए,
कहते थे काल्पनिक मिथ्या जिसे कभी, उनके शरण में रो गए।
मौसमी बरसात में मेढक मदारी हो गए।।
महल का बिस्तर छोड़, साहब झोपड़ी में सो गए,
हम भी है आतंकवादी, दुनिया में सबसे कह गए।
छेड़ते हैं मंदिर में लड़कियां, कहने वाले छेड़ गए,
मौसम का चमत्कार तो देखो, ठण्डी में पसीने हो गए।
मौसमी बरसात में मेढक मदारी हो गए।।
— संजय सिंह राजपूत