चटक वासंती रंग
केकड़े पकड़कर जीविकोपार्जन करने वाले देवव्रत के हाथ पर मरहम पट्टी हो गई थी और अब डॉक्टर उसके सिर के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश कर रहे थे. अपने शरीर के जख्मों की टीस को भूलते हुए देवव्रत को भाई दिबाकर के साहस और प्यार का चटक वासंती रंग याद आ रहा था. यह वही चटक वासंती रंग था, जिसके बल पर देश के वीर सपूत हंसते-हंसते मातृभूमि की बलिवेदी पर कुर्बान हो जाते हैं. शुक्र है दिबाकर कुर्बान होने से बच गया था.
बसंत पंचमी का पावन दिन था, दोनों भाई सरस्वती पूजन कर प्रसाद के मीठे पीले चावल खाकर चटक वासंती रंग के कपड़े पहने घर से एक और साथी गौर के साथ केकड़े पकड़ने के लिए खोलखली नदी के किनारे पहुंचे. तभी दिबाकर ने एक पेड़ के नीचे रुकने का मन बना लिया. देवव्रत और गौर केकड़ा पकड़ने की कोशिश में जुट गए. इसी दौरान पीछे से आए एक बाघ ने उन पर हमला बोल दिया. जान बचाने के लिए दोनों नदी में कूद गए. बाघ ने भी उनका पीछा करते हुए नदी में छलांग लगा दी. गौर तो किसी तरह खुद को बचाकर बाहर आ गया, लेकिन बाघ ने देवव्रत के सिर और हाथ को जकड़ लिया. अपने भाई को बेतहाशा दर्द में देखकर दिवाकर से रहा नहीं गया और उसने अपनी जान खतरे में डालते हुए नदी में छलांग लगा दी. उसने एक छड़ी और नाव से लकड़ी की तख्ती उठाकर बाघ पर जबर्दस्त वार किया. जिसके बाद चोटिल बाघ वहां से भाग गया और दिवाकर ने अपने जख्मी भाई को अस्पताल में भर्ती कराया.
यह चटक वासंती रंग का साहसी रिश्ता था या रिश्तों के चटक वासंती रंग का प्रताप, बहरहाल दोनों भाई भविष्य में भी वसंत पंचमियां मनाने के लिए सुरक्षित थे.
लीला बहन , लघु कथा बहुत अछि लगी जो बिलकुल सच्ची है .अब तो दोनों भाई जीवन भर रंग दे बसंती गायेंगे .
रिश्तों के वसंत में एक और वासंती रंग भर गया, जिसमें भाई का प्रेम विजयी हुआ. यह लघुकथा एक समाचार पर आधारित सत्यकथा है.