अमर ज्वाला
निर्भयपुर गांव की सरपंच मनिता ने एक चित्र देखा था. मोमबत्ती की तेज होती लौ को घूरती हुई एक स्त्री. क्या मनिता अपना ही अक्स देख रही थी उसमें? शायद हां, उसके मन ने कहा. उसका परिचय मात्र सरपंच ही था. गांव की उन्नति के लिए क्या नहीं किया था उसने? सरपंच बनते ही उसने सबसे पहले नाबालिग बच्चों के विवाह के लिए कठोर नियम घोषित किए थे. ये कठोर नियम केवलमात्र घोषणा के लिए नहीं थे, उनका कठोरता से पालन भी करवाया जा रहा था. गांव वालों की सहायता से उत्तम शिक्षा के लिए कई स्कूल भी खुल चुके थे. चिकित्सा-सुविधाएं, पीने के पानी की सुविधा, बिजली और इंटरनेट आसानी से सबको मिल रहे थे. यह सब पैदल घूम-घूमकर नमिता की व्यक्तिगत कोशिशों से संभव हो सका था. निर्भयपुर गांव को निर्भयता के लिए सरकार से अनेक पुरस्कार मिल चुके थे. आज सरपंच को सम्मानित करने मंत्री जी आ रहे थे. चौपाल खचाखच भरी हुई थी. अपनी सरपंच साहिबा को सम्मानित होते हुए देखना पूरे गांव का सपना था. मंत्री जी ने मनिता को सम्मनित करने से पहले गांव वालों से पूछा- ”क्या आप इनके बारे में जानते हैं?
”हां जी, ये हमारी सरपंच हैं. इन्होंने हमारे गांव को वे सब सुविधाएं दी हैं, जो शहरों में भी मिलनी नामुमकिन हैं.”
”मैं विकास के प्रति इनके मन में जलने वाली अमर ज्वाला के बारे में पूछ रहा हूं.” मंत्री जी बोले.
सन्नाटे जैसी खामोशी के बीच मंत्री जी ने कहा- ”आज से 14 वर्ष पूर्व 16 वर्ष की उम्र में निर्भयता से 12 किलोमीटर पैदल चलकर इन्होंने पुलिस चौकी में रिपोर्ट दर्ज़ करवाकर अपना बाल विवाह रुकवाया था. मेरा वह भाई आज भी मनिता की राह देख रहा है, अगर इन्हें मंज़ूर हो तो. मेरा भाई आज भी उस अमर ज्वाला को पूज रहा है.”
सबने मनिता के चेहरे की ओर देखा. सचमुच वह अमर ज्वाला से दीपित हो उठा था.
निर्भयपुर गांव की सरपंच मनिता ने गांव को वे सब सुविधाएं दी हैं, जो शहरों में भी मिलनी नामुमकिन हैं. उसके साहस और निर्भयता की ज्वाला अमर है.