टूटा विश्वास और बिखरा स्वाभिमान
शैलेश तमतमाता हुआ ऑफिस से बाहर आया उसका स्वाभिमान और स्वर दोनों ही उच्चावस्था में थे बात ये थी की उसे किसी आवशयक कार्य हेतु अपने एक महीने की सैलरी एडवांस चाहिए थी और शैलेश स्कूल में कोई नया नही था बल्कि २० सालों से विद्यालय में हिंदी पढ़ाता चला आ रहा था वो बच्चों को केवल किताबी ज्ञान ही नही देता था बल्कि उनमे मौलिक चिंतन और नैतिक गुणों के विकास के बीज भी उनके हृदय और मानस में बोता था जिस पर उसे बहुत गर्व था | आज उसे घर के आवश्यक कार्य हेतु अपने एक महीने की तनख्वा एडवांस चाहिए थी |लेकिन प्रिंसिपल ने पैसे देने से साफ़ मना कर दिया| शैलेश बढ़बढाता हुआ बाहर निकल गया….. शिक्षक कोई मजाक नही है बल्कि जीवन बनाने वाला राष्ट्र का निर्माता है हमे समझते क्या है ये आजकल के व्यापारी आज ही स्कूल छोड़ दूंगा तब इन्हें मेरी कद्र होगी हर साल अपने विषय में सौ प्रतिशत परीक्षा परिणाम देने वाला शिक्षक जब जाएगा तब मालुम पड़ेगा | ये सोच उसने रिसेप्श्न से खाली पेपर लिया और उस पर कुछ लिख ही रहा था की इतने में पियोन आया और उसने कहा सर…. प्रिंसिपल मेडम ने बोला है… की आप अपनी अलमारी खाली कर दें और एनओसी साइन कराकर अपनी बची हुई सैलेरी लेलें | शैलेश पर तो मानो बिजली सी ही गिर गयी हो उसका चेहरा निस्तेज हो चूका था| उसे विश्वास नही हुआ की जिस स्कूल को उसने अपने जीवन का एक बढ़ा भाग देकर ईमानदारी से काम करते हुए आगे बढ़ाया आज वो ही स्कूल उसे नौकरी से निकालने को आमादा है |
शैलेश ने अपने टूटे विश्वास को और बिखरे हुए स्वाभिमान को बटोरा और प्रिंसिपल को जाकर सॉरी बोला | लेकिन आज कक्षा में उसने नैतिक मूल्यों के बारे में बच्चों को कुछ नही पढ़ाया |