मिले हर दर्द की अब तो दवाई चाहिये मुझको
मिले हर दर्द की अब तो दवाई चाहिये मुझको
तुम्हारी कैद से सचमुच रिहाई चाहिये मुझको
कुबूलो सब गुनाहो को यही इक रास्ता है बस
सिवा इसके नही कोई सफ़ाई चाहिये मुझको
फरेबों की दिखावट की ऊँचाई छोड़ दी मैने
मेरे कद में हक़ीक़त की ऊँचाई चाहिये मुझको
हमेशा जो किसी भी हाल में सच को लिखे सच ही
वही ईमान की अब रोशनाई चाहिये मुझको
मेरे सुख में मेरे दुख में निभाएं जो सदा मुझसे
किसी हमदर्द की वो आशनाई चाहिये मुझको
तुम्हारे नफ़रतों के भाषणो के कर्कशी स्वर से
बचाए रूह जो अब वो रूबाई चाहिये मुझको
बहुत मैली हुई है पावनी गंगा सियासत की
किसी भी हाल अब इसकी सफ़ाई चाहिये मुझको
सतीश बंसल
१२.०२.२०१८