गीत/नवगीत

मुरझाएं आनन सुमन बने

मुरझाएं आनन सुमन बने
अबके वसंत ऐसे आना।
हर आँगन में उल्लास मने
अबके वसंत ऐसे आना।।

सब ठूठ हुई उम्मीदों को
आशाओं की कोपल देना।
जो भूल चुका अपना जीवन
उस जीवन को जीवन देना।।
जो मौन रहे उन अधरों पर
कोई नव गीत सजा जाना…

रोटी के लिये पलायन से
जो आँगन खाली-खाली हैं।
उपवन जिनमे अब पौध नही
केवल बूढ़े कुछ माली हैं।।
उनकी कमज़ोर निगाहों को
मुस्काते फूल दिखा जाना…

खेतों की ये बंजर काया
खलिहानों में पसरा मातम।
है विनय यही हे ऋतुराजा
हर लेना गाँवों का हर ग़म।।
पगडंड़ी की पीड़ाओं का
हो अगर निदान बता जाना…

परम्परा के कोमल पग में
घाव किये हैं लोभ शूल ने।
दरकिनार करके गुलाब को
ताज रखा है सर बबूल ने।।
जिस पर चलकर सब फूल फलें
हमको वो राह दिखा जाना…

सतीश बंसल
१७.०२.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.