गीत/नवगीत

“हम पंछी हैं रंग-बिरंगे”

गदराई पेड़ों की डाली
हमें सुहाती हैं कानन में।।
हम पंछी हैं रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं वन-उपवन में।।

पवन बसन्ती जब पर्वत से,
चलकर मैदानों तक आती।
सुरभित फूलों की सुगन्ध तब,
मन में नव उल्लास जगाती।
अपनी खग भाषा में तब हम,
गीत सुनाते हैं मधुबन में।
हम पंछी हैं रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं वन-उपवन में।।

इन्द्र धनुष जब नभ में उगता,
प्यारा बहुत नजारा होता।
धरा-धाम के पाप-ताप को,
घन जब पावन जल से धोता।
जल की बून्दें बहुत सुहाती,
पड़ती हैं जब घर-आँगन में।
हम पंछी हैं रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं वन-उपवन में।।

उदय-अस्त की बेला में हम,
देते हैं सन्देश अनोखा।
गान उसी का करते हम.
जो रखता है लेखा-जोखा।
चलता जिसकी कृपादृष्टि से,
समयचक्र सबके जीवन में।
हम पंछी हैं रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं वन-उपवन में।।

सुख से रहना अगर चाहते,
सच से कभी न आँखें मींचो।
जीवन की सुन्दर बगिया को,
नियमित होकर प्रतिदिन सींचो।
नित्य नियम से रोज सवेरे,
सूरज उगता नील गगन में।
हम पंछी हैं रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं वन-उपवन में।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है

One thought on ““हम पंछी हैं रंग-बिरंगे”

  • प्रदीप कुमार तिवारी

    खूबसूरत रचना की है आपने

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