कविता

सब कुछ छीन लोगे मुझसे

सब कुछ छीन लोगे मुझसे
मेरा अधिकार ,मेरा हक
मगर यादों को कैसे छिनोगे
वो तो हर पल टिसती हैं
एक घाव की तरह
जब-जब तुम मेरे
अधिकार की बात करते हो
तो यादों के घाव पर नमक का काम करते हो
यदि सच में कुछ छिनना चाहते हो
तो छिन लो अपनी यादे
जो भूलकर भी उन यादों मे तुम न आओ
और यदि कुछ देना चाहते हो
तो दे दो वो सभी अधिकार
मेरा हक मेरा प्यार
एक बार गले से लगा कर कह दो
कि गलती हो गयी मुझसे
फिर क्या न्यौछावर कर दूँगी
तुझपर अपनी जान
भूल जाऊँगी सभी दर्द
बस तुम एक बार कह दो
की लो वापस आ गया
नही जा सका तुमसे दूर
बोलो ना प्लीज ।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४