लघुकथा

खुशनसीबी

गूंगे-बहरे रमेश को माता-पिता-भाई-बहिनों से बिछुड़े पांच साल हो गए थे. उसके परिवार वाले भी उसे ढूंढ-खोजकर निराश हो चुके थे. अब रमेश को अपने परिवार से मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं दिखाई दे रही थी. हो भी कैसे? अपनी व्यथा वह किसको बताए, कैसे बताए? वह अपने परिवार के साथ जयपुर के गनगौर मेले में गया हुआ था. वहीं से किसी ने उसका अपहरण कर लिया था. तब से वह दिल्ली के भीड़ भरे बाज़ारों में भीख मांग रहा था. उसे दिन भर भीख से जो कुछ मिलता, उससे छीन लिया जाता, कम भीख मिलने पर उसे मिलती पिटाई की रोटी और पानी के लिए तरसने की प्यास. उस दिन उसे रूखा-सूखा खाना भी नसीब नहीं होता. एक दिन इसी भीख मांगने की मजबूरी उसकी खुशनसीबी बन गई. उसने एक सूटेड-बूटेड व्यक्ति के सामने हाथ फैलाया. व्यक्ति शायद दरियादिल था, उसने उसे दस रुपए का नोट दिया. तभी रमेश ने उसकी शक्ल देखी, अरे! वह तो उसके प्यारे चाचू थे! रमेश ने अपनी टूटी-फूटी चिर-परिचित भाषा में ”चाSSचूSS” कहा. चाचू ने भी उसको ध्यान से देखा. ”रमेश, तू यहां कैसे?” और उसे गले से लगा लिया. सारी बात समझकर चाचू ने तुरंत एक ऑटो रिक्शा में उसे बिठाया और रेडीमेड कपड़ों की एक दुकान से उसके कपड़े खरीदकर बदलवाए, नए जूते पहनवाए, एक होटल में खाना खिलाया और अपने घर ले गए. रात को ही चाचू ने अपनी भाभी को फोन लगाया- ”भाभी, घर को दुल्हिन की तरह सजाकर रखना, कल टैक्सी से किसी को मिलवाने ला रहा हूं. शाम को छः बजे पहुंचूंगा.”

भाभी ने सोचा देवर जी ने शादी कर ली है, नई दुल्हनिया को लेकर आ रहे हैं.

घर को दुल्हनिया की तरह सजा दिया गया था. खाने-पीने का प्रबंध भी चाक-चौबंद था. शाम को छः बजते ही घर के बाहर एक टैक्सी आकर रुकी. देवर जी उतर गए, भाभी आरती लेकर टैक्सी के पास आ गईं. टैक्सी में रमेश को देखकर वह भौंचक रह गई. रमेश भी मां को देखकर हैरान था. अगले ही पल दोनों की हर्षमिश्रित अश्रुधाराओं का सम्मिलन हो रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “खुशनसीबी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर लघुकथा !

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, अत्यंत व्यस्तता के बावजूद सकारात्मक प्रतिक्रिया द्वारा प्रोत्साहन पाना हमारी भी खुशनसीबी है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, आपकी प्रोत्साहक प्रतिक्रिया मनोबल सशक्त करती है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    परमात्मा की महती कृपा से जब अनुकूल समय आ जाता है, तब गूंगे-बहरे रमेश को भी अपने परिवार से मिलने का अवसर मिल जाता है. यह उसकी खुशनसीबी भी है और परिवार की भी.

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