मेरी परछाईं – मेरी बेटी भव्या
महिला दिवस पर खास मेरी बेटी के लिए यह रचना-
मेरी नन्हीं सी , कली हो तुम
जीतीं हूँ जिसके लिए , वो जिंदगी हो तुम
सीचा है बडें प्यार से जिसे
मेरे प्यार की वो ! छवि हो तुम
मेरी अर्ध-जिंदगी का, पूर्ण ख्वाब
मेरी आत्माँ , मेरी वो ! परछाईं हो तुम
जन्म दें तूझें, जैसे खुद को ही पा लिया
जीती हूँ मै, वो हर पल, जो तुझे दिया
जब से तू , जिंदगी में आई
इक बार फिर, मै खुदसे रू-ब-रू हो पाई
सच जैसे कोई , ख्वाब हुआ हो
अर्ध-जिंदगी में, पूर्ण कोई आज हुआ हो
कह सकूं जिसें अपना, वो अंश तुम
मेरे घर की रोशनी, मेरा गुरूर तुम
जीती हूँ मै! हर घड़ी जिसमें
मेरी वो ! जिंदगी हो तुम
— रीना सिंह गहलोत (रचना)
माँ के सच्चे जज़्बात ….