कविता

मेरी परछाईं – मेरी बेटी भव्या

महिला दिवस पर खास मेरी बेटी के लिए यह रचना-

मेरी नन्हीं सी , कली हो तुम
जीतीं हूँ जिसके लिए , वो जिंदगी हो तुम

सीचा है बडें प्यार से जिसे
मेरे प्यार की वो ! छवि हो तुम

मेरी अर्ध-जिंदगी का, पूर्ण ख्वाब
मेरी आत्माँ , मेरी वो ! परछाईं हो तुम

जन्म दें तूझें, जैसे खुद को ही पा लिया
जीती हूँ मै, वो हर पल, जो तुझे दिया

जब से तू , जिंदगी में आई
इक बार फिर, मै खुदसे रू-ब-रू हो पाई

सच जैसे कोई , ख्वाब हुआ हो
अर्ध-जिंदगी में, पूर्ण कोई आज हुआ हो

कह सकूं जिसें अपना, वो अंश तुम
मेरे घर की रोशनी, मेरा गुरूर तुम

जीती हूँ मै! हर घड़ी जिसमें
मेरी वो ! जिंदगी हो तुम

— रीना सिंह गहलोत (रचना)

रीना सिंह गहलौत 'रचना'

कवयित्री नई दिल्ली

One thought on “मेरी परछाईं – मेरी बेटी भव्या

  • मीनू झा

    माँ के सच्चे जज़्बात ….

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