“नियति”
हमारे पूर्वजों ने,
बरगद का एक वृक्ष लगाया था,
आदर्शों के ऊँचे चबूतरे पर,
इसको सजाया था।
कुछ ही समय में,
यह देने लगा शीतल छाया,
परन्तु हमको,
यह फूटी आँख भी नही भाया।
इसकी शीतल छाया में,
हम ऐसे डूब गये,
कि जल्दी ही,
सारे सुखों से ऊब गये।
हमने काट डाली,
इसकी एक बड़ी साख,
और अपने नापाक इरादों से,
बना डाला एक पाक।
हम अब भी लगे हैं,
इस पेड़ को छाँटने में,
अपने पापी इरादों से,
लगे है दिलों को बाँटने में।
हे बूढ़े वृक्ष बरगद!
तूने हमारी हमेशा,
धूप और गर्मी से रक्षा की,
और हमने तेरी,
हर तरह से उपेक्षा की।
शायद तुझे आभास नही था,
परिवार में वृद्ध की,
यही होती गति है,
बूढ़े बरगद!
आज तेरी भी,
यही नियति है।।
—
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)