अभी ड़री सहमी है नारी
अभी ड़री सहमी है नारी,
अभी सुरक्षित ज़रा नही है
दुष्ट दुशाशन भी ज़िन्दा है,
रावण अब तक मरा नही है।
कर्तव्यों के पालन में हम,
पूर्ण रूप से फेल रहे हैं
अभी निर्भया की अस्मत से,
रोज दरिन्दे खेल रहे हैं।।
अभी गली में चौराहे पर,
फब्ती कसते लोग मिलेंगे
नज़रों के जहरीले फन से
तन को डँसते लोग मिलेंगे।
अभी दुष्ट कितने नारी को
समझ खिलौना खेल रहे हैं
तन मासूम अभी कितने ही
बेहद पीड़ा झेल रहे हैं।।
अभी कंस कितने कन्या को,
गर्भो में संहार रहे हैं
नित दहेज दानव कितनी ही,
कन्याओं को मार रहे हैं।
पुरुष प्रधान सोच हम सब की,
बदल कहाँ पायी है अब तब
नारी नर के बुने जाल से,
निकल कहाँ पायी है अब तक।।
आओ मिलकर सोचे समझे,
क्यूँ ये सूरत नही बदलती
नारी के प्रति श्रृद्धा वाली,
ज्योति नही क्यूँ मन में जलती।
संस्कारों के इस आँगन में
दुर्भावों का साया क्यूँ है
वंशज होकर प्रभु राम के
रावण को अपनाया क्यूँ है।।
सतीश बंसल
०८.०३.२०१८