रूह में तस्वीर उतर जाए
बदली के स्याह काले
रेशमी बालों ने
चाँद को ढँक लिया
महक महक गया चाँद
आज बहुत करीब था
बैचेन थीं उसकी धड़कन
निगाहों से लिख रहा था
दिल पर कोई नज़्म
लग रहा था
कर दिए सारे अलंकार
समर्पित गीतिका को
ये पल बेहद खूबसूरत थे
जिन्हें वक्त भी सहेजना
चाहता है
स्मृतियां दीवानी होजाएँ
हवाएं तरुण होजाएँ
कर आलिंगन
खुशबुएँ हो जाएं समृद्ध
फूल खिलकर
खुलकर मुस्कुराएं
ज़िन्दगी में प्राण ढल जाएं
बहक बहक जाएं
पैर तमन्नाओं के
उम्मीद सँवर सँवर जाएं
रोशन हो जाएं
दिल के रेशे रेशे
साँसों की डोर
थमी सी रह जाएं
उस पल को
क़ैद करें कल्पनाएं
रूह में तस्वीर उतर जाएं
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा), इंदौर