गीत/नवगीत

फिर चलने की सोच रहा हूँ

फिर चलने की सोच रहा हूँ, फिर चलने की सोच रहा हूँ।

छोड़ सहारे दुनिया भर के, भूल हादसे घर-बाहर के,
ले उम्मीदों की बैसाखी, स्वप्नांे का बनकर मैं पाखी,
शिखर-पार जाने की खातिर, अब उड़ने की सोच रहा हूँ।
फिर चलने की सोच रहा हूँ।।

भटका हूँ सदियांे तक भ्रम मंे, धर्म-जाति के उलझे क्रम मंे,
छद्म जगत के बहकावों को, दूर झटकर दिखलावों को,
खुद से सच कहने की खातिर, सब कहने की सोच रहा हूँ।
फिर चलने की सोच रहा हूँ।।

घावों पर लेप लगाकर, शुष्क कण्ठ तक जल पहुँचाकर,
सहलाकर व्याकुल हृदयों को, देकर दीप्ति बुझे दीपांे को,
तुष्टि प्राप्त करने की खातिर, परकेन्द्रित हो सोच रहा हूँ।
फिर चलने की सोच रहा हूँ।।

— सन्त कुमार दीक्षित 

सन्त कुमार दीक्षित

संप्रति:- माॅडल प्राथमिक विद्यालय रनियाँ द्वितीय, सरवनखेड़ा, कानपुर देहात में प्रधानाध्यापक सम्पर्क:- 7905691970, ईमेल- skdupbsp@gmail.com