चुंबक के गुण
नन्ही माशा रोज सवेरे,
ठीक समय पर शाला जाती,
बड़े ध्यान से पाठ याद कर,
सीधे घर को आया करती.
ठीक जगह पर बस्ता रखकर,
खुद ही कपड़े बदला करती,
खाना खाती सही ढंग से,
फिर पढ़ती और लिखती रहती.
पढ़-लिखकर जब थक जाती तब,
दादी के संग सो जाती थी,
शाम को दादी करतीं कढ़ाई,
माशा तब खेला करती थी.
एक दिवस माशा ने देखा,
दादी कुछ-कुछ ढूंढ रही थी,
माशा बोली, ”क्या खोया है?”
”लगता है वह कोई सुई थी.”
माशा झट से घर में आई,
छलनी उसने एक उठाई,
सारी मिट्टी छानी उसने,
मगर सुई को खोज न पाई.
तभी अचानक उसको सूझा,
चुंबक से यह हो सकता है,
चुंबक लेकर खूब फिराया,
आखिर उसको खोज निकाला.
दादी खुश होकर बोली, ”यह
जादू कैसे तुझको आया?”
माशा बोली, ”टीचर जी ने,
यह चुंबक का गुण बतलाया.
अगर फिराओ लोहे पर तो,
लोहा इससे चिपक जाएगा,
स्टील इससे नहीं चिपकता
सही स्टील का पता लगेगा.
विद्युत-धारा इससे गुजरे,
तो विद्युत-चुंबक बन जाता,
छोटी-बड़ी मशीनों में यह,
विद्युत-चुंबक काम में आता.
बड़ी-बड़ी क्रेनों में लगता,
बिजली की घंटी में लगता,
दिशा-ज्ञान होता है इससे,
धरती में भी यह है बसता.
लोहे को चुंबक से रगड़ो,
वह भी चुंबक बन जाता है,
चुंबक की शक्ति से अब तो,
यंत्र-मानव (रोबोट) भी बन जाता है.
अब तो बड़े-बड़े रोगों की,
चुंबक ने छुट्टी कर डाली,
चुंबकीय चिकित्सा पद्धति,
बड़ी अनोखी, बहुत निराली.
नन्ही माशा की बातों से,
दादी दंग रह जाया करती,
झट से अपनी खोल पिटारी,
बर्फी खूब खिलाया करती.
बच्चों को कोई भी विषय कहानी या कविता के माध्यम से सिखाया जाय तो वह बहुत रुचिपूर्वक भी सीखता है और यह ज्ञान स्थाई भी रहता है. यही ज्ञान बाल कथा गीत से सिखाया जाए, तो सोने पे सुहागा हो जाता है. यह बाल कथा गीत 1983 में समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था और बहुत पसंद किया गया था.