“भूखी गइया कचरा चरती”
सड़क किनारे जो भी पाया,
पेट उसी से यह भरती है।
मोहनभोग समझकर,
भूखी गइया कचरा चरती है।।
कैसे खाऊँ मैं कचरे को,
बछड़ा मइया से कहता है।
दूध सभी दुह लेता मालिक,
उदर मेरा भूखा रहता है।।
भोजन की आशा में बछड़ा,
इधर-उधर को ताक रहा है।
कोई चारा लेकर आये,
दरवाजे को झाँक रहा है।।
हरी घास के लाले हैं तो,
भूसा मुझे खिलाओ भाई।
मेरे हिस्से की खा जाते,
तुम सारी ही दूध-मलाई।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)