सामाजिक

आखिर क्यों

क्या आपको पता है, कि हमारे देश में ऐसा कौन सा अपराध है जिसको करने पर अगर आप सफल हो जाते हैं तो कानून में कोई सजा नहीं है, किन्तु अगर कहीं आप असफल हो गए तो कानून आप को सजा सुनाने के लिए तैयार बैठा होता है ?

एकदम सही सोचा आपने, ऐसा अपराध है “आत्महत्या करना” | यानि स्वयं को मौत के हवाले करना | तरीका चाहे कोई भी हो सकता है | ट्रेन से काटना, आग के हवाले हो जाना, ऊपर से कूद जाना, किसी हथियार का प्रयोग करना, मतलब तरीके तो इतने हैं कि पूरी की पूरी किताब भी कम पड़ जाये |

मेरा आशय, आत्महत्या के तरीकों को लेकर बिलकुल नहीं है, बल्कि हम तो उस समय या उस अवधि पर गौर करना चाहते है जिस समय ये कार्य किया जाता है | ये कदम कोई सोच समझ कर उठाया गया कदम तो कतई नहीं होता | परिस्तिथिवश ऐसा माहौल बन जाता है जिसमे आदमी की सोचने समझने की शक्ति कमजोर ही नहीं बल्कि समाप्त हो चुकी होती है | और दिमागी तनाव के एकाएक तेज होते आवेग और आवेश में कोई भी आत्मघाती कदम उठा कर खुद को समाप्त कर लेता है | उस समय उसमें इस कदम के परिणाम को लेकर होने वाले खुद पर या अपने परिवार पर असर का भी मुल्यांकन करने की भी शक्ति नहीं होती और अपने पीछे एकदम अचानक बिना सोचे समझे परिवार को अधर में छोड़ कर चल देता है |

सिर्फ और सिर्फ 30 सेकंड से लेकर 2 मिनिट का समय होता है जब दिमाग की सोचने की शक्ति समाप्त हो जाती है और दिल, दिमाग पर बुरी तरह से हावी हो जाता है और आदमी आपने साथ साथ अपनों का भी बुरा कर बैठता है | बाद में पीछे सिर्फ एक यक्ष प्रश्न रह जाता है कि उसने ऐसा क्यों किया ? जिसका जबाव शायद उसके पास भी नहीं होगा |

ईश्वर ने काश अगर मनुष्य को ऐसी शक्ति दी होती कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति से उसकी मौत के बाद भी उसका इंटरव्यू लिया जा सकता है तो लगभग 90 प्रतिशत मामलों में मरने वाले व्यक्ति के पास सिवाय पछताने के आलावा कोई चारा नहीं होता और हर प्रश्न के जबाव में उसका एक ही उत्तर होता कि ये मैने क्या कर लिया ? ऐसा मैंने क्यों किया ? मेरे ऐसा करने के बाद भी समस्या तो ज्यों की त्यों है | अब तो कुछ भी नहीं हो सकता |

ऐसे पूरे घटनाक्रम में जब आवेश का उच्चतम स्तर होता है, उस वक्त अगर कोई उस व्यक्ति का ध्यान भटका दे तो ये अनहोनी होने से बच जाती है | लेकिन ऐसा खुशकिस्मत इन्सान हर कोई नहीं हो सकता |

वास्तव में देखा जाये तो ऐसी विस्फोटक स्तिथि एकदम नहीं बन जाती बल्कि धीरे धीरे बिगड़ते हालात मनुष्य को उस ओर का रास्ता दिखाते हैं | बिगड़े हालात तो सभी के साथ होते हैं | बस कोई संभाल लेता है, कोई धेर्य का सहारा लेते हुए आगे चलता है | वहीँ कुछ लोग हार मान कर या दबाव में आ कर ऐसा आत्मघाती कदम उठा लेते हैं | और अपना और अपनों का जीवन नाश कर जाते हैं |

इसलिए हम सब का फर्ज़ बनता है कि अपने जीवन में हमेशा सकारात्मक सोच रखते हुए आने वाले कठिनाइयों के पलों का सामना करें और साथ ही अपने आसपास समाज में निराशा के भंवर में फंसे किसी भी नाउम्मीद इन्सान के जीवन में उम्मीद के फूल खिलने कोशिश करें | ताकि वह और उसका परिवार अचानक हो सकने वाले मुसीबतों के पहाड़ के अनगिनत पत्थरों की मार से बच सके |  

उमाकान्त श्रीवास्तव

आयु 48 वर्ष वर्तमान में एक निजी संस्थान ARVSONS में HR मैनेजर के रूप में कार्यरत। इससे पूर्व रघुनंदन मनी में भी लगभग 8 वर्ष HR का कार्य देखा। 387, पश्चिम पुरी, शास्त्रीपुरम रोड, आगरा 282007 मोबाइल : 9410833909