कुंडलियाँ छ्न्द
#आधुनिकता
नैतिक मूल्यों को रखा, बड़े गर्व से ताक।
खूब उड़ाई धूल में, संस्कारों की खाक।
संस्कारों की खाक, धूसरित करती माया।
चकाचौंध पुरजोर, आधुनिकता की छाया।
“अनहद” दौड़ें दौड़, करें भी काम अनैतिक।
रखें ताक पर मूल्य, पूर्वजों के सब नैतिक।
__________अनहद गुंजन18/03/18
मंगलमय हो हर दिवस,मंगलमय हो भोर।
पूरी हो हर कामना, खुशियां हों चहुओर।
खुशियां हों चहुओर, नवल से भाव जगाओ।
भूल सभी संताप, नये परचम लहराओ।
चैत्र शुक्ल प्रतिवर्ष, विगत का कर देती क्षय।
नव नूतन हो भोर, दिवस हो हर मंगलमय।
___________ अनहद गुंजन अग्रवाल18/03/18
खूब महकते फूल से, कभी उड़ाते गंध।
कभी करें तकरार ये, दृढ़ करते सम्बंध।
दृढ़ करते सम्बंध , कभी खड्ढा ये खोदें।
देते बदल रुझान,कभी झट से ये रोदें।
बढ़ते ”गुंजन’ पाप, प्रजा के बीच लहकते।
गंधहीन हैं फ़ूल, मगर ये खूब महकते।
____________अनहद गुंजन 15/03/18