कविता

दीवार….

काश ! तुम्हारा जाना
मेरे हृदय पर इतना आघाती न होता

चले तो गए तुम
बाद उसके जीना मेरा दुश्वार हुआ

जिस दर्द और चुभन को मैंने महसूस किया
आँसू बनकर नयनों से ढ़लकने लगा

कोशिश तो बहुत की भुला दें तुम्हें
पर शायद प्रेम!
अंतर्मन की गहराईयों में जाकर समा गया

वो प्रेमसिक्त गुलाबी एहसास
जो तुम मेरे दिल की दीवारों पर उभार गए
आज गहरा हो रंग बिखेर रहा
चेहरा तो मेरा आईने में, पर अक्स
तुम्हारा बन रहा….

*बबली सिन्हा

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