कागज दिल
कहा हो प्रीतम !
ये आंखें ढूंढ रही है
आ जाओ तुम अब
क्यों रूठे हो तुम
आकर तुम बोलों
राज रूठने का खोलों
आओ न प्रीतम
तेरे यादों को मैं
बयां किस कदर करूँ
ये कागज दिल पर
किस तरह उतारू
मेरे नयनों के काजल
आँसू संग साथी बन
बहकर निकल गये
सिर्फ-
याद बनकर रह गये
वो वक्त फिर न आया
वो याद लौट कर आया
मेरे श्याम की आहट
मैं सुन भी न पायी
है याद कितना दिल में
इक छोटे कागज दिल पर
किस तरह उतारू!
— बिजया लक्ष्मी