गज़ल
इस बेरहम दुनिया का है पुराना चलन
हवा-ए-हिज्र से उजड़े मुहब्बतों के चमन
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हुई मुद्दत तेरे दीदार का नशा करके
अब तो आजा मेरे महबूब टूटता है बदन
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मंज़िल दूर है और वक्त भी है कम लेकिन
मुझे चलने नहीं देती मेरे पैरों की थकन
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लब तो सी दिए मेरे तेरी कसम ने पर
अब तेरा नाम पुकारे मेरे दिल की धड़कन
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हो के बदनाम मैं मशहूर हो गया घर-घर
चलो कुछ काम तो आया मेरा दीवानापन
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तेरे आने की आस खत्म हुई है जब से
न आँख में आँसू हैं न सीने में जलन
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।