लेख– बच्चें ही नहीं, अगर परीक्षा प्रणाली भी फ़ेल होने लगे। तो शिक्षा क्षेत्र में बदलाव की सख़्त दरकार।
यह देश के समक्ष सबसे बड़ी विडंबना नहीं तो क्या जिस दौर में अन्य क्षेत्रों में हम नित नए आयाम स्थापित करने की बात करते हैं। उस दौर में शिक्षा जो समाज निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, वह चरमरा गई है। आज छात्र ही फ़ेल नहीं हो रहें, परीक्षाएं भी फ़ेल साबित हो रहीं है। छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की दर बढ़ रही है। अमूमन यह देखा जाता है, कि किसी क्षेत्र में समस्या हो तो, उसे दूर करने का उपाय कर लिया जाता है। पर शिक्षा का क्षेत्र आज समस्याओं में आकंठ डूबता जा रहा, लेकिन कोई उपाय उसमें सुधार का न होना चिंतित करता है। दुःखद स्थिति तब हो जाती है, जब पता चलता है। शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है। फ़िर भी देश के एकाध राज्यों को छोड़ दे। तो सभी राज्यों की स्थिति शिक्षा के क्षेत्र में मलिन है। आज के दौर में वह व्यवस्था ख़ुद फ़ेल हो रहीं। जो जीवन में सफ़ल होने की गारंटी मानी जाती है। वर्तमान दौर में शिक्षा क्षेत्र कुछ कमियों से दो-चार हो रही है। जिसमें शिक्षकों की कमी, शिक्षा की गुणवत्ता में कमी और रोजगारपरक न बन पाना है। इतना ही नहीं, शिक्षा के क्षेत्र में नूतनता का अभाव बच्चों की मौत का कारण भी बन रहा है। यह सूरतेहाल पूरे देश का है। जब जो परीक्षा सफ़ल और असफ़ल होने की गारंटी बनती है, वह ही फ़ेल हो रही। फ़िर ऐसे में कुछ यक्ष प्रश्न यही, कि क्यों बच्चों पर अधिक नंबर लाने का दवाब डाला जाता है? अधिक नंबर जीवन में सफ़ल होने की गारंटी नहीं हो सकती।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड़ 10वीं की गणित औऱ 12वीं की अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो गया। यह भी शिक्षा व्यवस्था की ज्वंलत समस्या बनती जा रहीं है। जिससे अछूता कोई राज्य बोर्ड औऱ प्रदेश नहीं है। मध्यप्रदेश बोर्ड की परीक्षा हो, उत्तरप्रदेश या फ़िर बिहार बोर्ड। लेकिन अब अगर बट्टा केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की साख पर लगा है, तो यह तकलीफदेह स्थिति है। यह देश के भविष्य का दुर्भाग्य ही है, कि लचर परीक्षा प्रणाली का खामियाजा प्रतिवर्ष लाखों छात्रों को उठाना पड़ता है। कभी पेपर लीक हो जाता है, कभी उत्तरपुस्तिका पर ग़लत नम्बर आंककर दे दिए जाते हैं। तो कभी ग़लत प्रश्न-पत्र छात्रों को थमा दिया जाता है। आख़िर इन समस्याओं से देश के भविष्य को मुक्ति कब मिलेगी। देश के विभिन्न हिस्सों में कभी टॉपर को फ़ेल बना दिया जाता है, तो कभी फ़ेल होने वालों को टॉपर बना दिया जाता है। आख़िर शिक्षा के नाम पर यह कैसा खेल चल रहा। हर बार परेशान छात्र ही होता है, औऱ परीक्षा विभाग तो जांच का आदेश देकर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर लेता है। यह रवायत कब तक चलती रहेगी। एक तरफ़ सरकार विद्यार्थियों का तनाव कम करने की बात करती है, तो दूसरी तरफ़ परीक्षा प्रणाली की खामियां उनके तनाव को असहनीय बना देती है।
ऐसे में परीक्षा प्रणाली अगर लचर होती जा रहीं। तो इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है, कि शिक्षा क्षेत्र से ज़ुड़े कर्मचारी की बेईमानी तो समस्या की जड़ थी ही। अब उसे ओर बढ़ाने का काम किया है, तकनीक ने। जिस कारण किसी भी बोर्ड, राज्य सरकारों और परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं द्वारा परीक्षा आयोजित करना बड़ी समस्या बनती जा रहीं है। कुछ समय पूर्व तक बिहार और उत्तरप्रदेश ही बदनाम थे। परीक्षा प्रणाली में विसंगतियों को लेकर, लेकिन अब कोई राज्य सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में अगर जिस परीक्षा प्रणाली से आज देश में योग्य लोगों को तैयार किया जाता है। उसकी विश्वसनीयता ही अधर में है, फ़िर ऐसी पढ़ाई का क्या अर्थ? परीक्षाएं योग्यता का मापदंड मानी जाती है, तो उनकी विश्वसनीयता भी बनी रहना आवश्यक है। जिसके लिए राज्य सरकारों औऱ केंद्र को मजबूत कदम उठाना चाहिए, नहीं तो देश को पुरानी शिक्षा व्यवस्था यानी गुरुकुल पद्धति की तरफ़ दोबारा क़दम बढ़ाना चाहिए। क्योंकि गुरुकुल व्यवस्था आज की शिक्षा व्यवस्था से कई मायने में अच्छी औऱ विश्वसनीय भी है। इसके साथ आज के दौर में शिक्षा क्षेत्र में उपजी कुछ समस्याएं जैसे क़िताबों तले दबे बचपन को आज़ाद औऱ बच्चों की आत्महत्या में कमी भी गुरुकुल पद्धति से लाई जा सकती है। गुरुकुल पद्धति इसलिए भी आज की शिक्षा प्रणाली से बेहतर है, क्योंकि उसमें न अंकों के फेर में छात्र फंसता है, औऱ न एक ही पैमाने पर सभी छात्रों की कुशाग्र बुद्धि का परीक्षण किया जाता है। तो ज़रूरत सिर्फ़ इस बात की है, कि बुद्धिजीवी, सरकार औऱ अभिवावक कुछ सार्थक पहल करने को तैयार हो। विकल्प तो मौजूद हैं ही।