गज़ल
दोस्तों में हूँ मैं, अपने दुश्मनों में हूँ
दिमागों में हूँ थोड़े और थोड़े दिलों में हूँ
तारीफ कर रहा कोई इल्ज़ाम दे रहा
न हो के भी हाज़िर मैं तेरी महफिलों में हूँ
ईमान खुद अपना भी जांच लें वो एक बार
जिनकी नज़र में शामिल मैं काफिरों में हूँ
तेरी कहानी और किसी दिन सुनूंगा मैं
आजकल अपनी ही कई उलझनों में हूँ
क्या हुआ जो ख्वाहिशें पूरी न हुईं सब
मैं भी तो किसी की अधूरी हसरतों में हूँ
पलकों पे जो बिठा के मुझे रखते थे कभी
बदकिस्मती से अब उन्हीं की ठोकरों में हूँ
— भरत मल्होत्रा