गज़ल
शहर के लोग खुश हैं खातों में पैसा देखकर,
गाव के लोग दंग है घर में नसीब रूठा देखकर
पैसा की पुकार जरूरतों में बने लाचारी आधार ,
आईना याद आया बूढ़ों की तसल्ली इशारा देखकर
आजकल इन्सानियत दिल से निभाता कौन है
जो गिरा उसको नही कोई उठाता बढता देखकर
ज़िन्दगी बनकर हवा चलती हारा देखकर
फिर दुबारा ही नही मिलती ज़माना देखकर
उम्र के साथ निभाते ही मज़बूरियाँ भी बढ़ती हैं,
साहूकार का धमक आना बेमौके कड़कड़ाना देखकर
रखो उम्मीद की किरण न कहो तुम ऐसा
बिक रही है न्याय की कुर्सी भी पैसा देखकर
रेखा मोहन १३/४/१८