गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

मां नींव वन जब हर बात समझाती है ।
छत टिकी है घर की कैसे तव समझ आती है ।।

वाप के कंधे दीवारें है घर की बेटा ।
वाप की आंखों को घर की चौखट बताती है ।।

वदी नेकी जो मर्जी चाहे करके आओ तुम ।
सकूं की नींद तो मां के आगोस मे ही आती है ।।

हलवा पूरी वो स्वाद कहां से आएगा ।
मां के हाथ की बनी सूखी रोटी मुझे भाती है ।।

आंगन की तुलसी ही जीवन है मां का ।
रोज मां तुलसी चौखट पर दीया जलाती है ।।

घर की खुशी की खातिर दिन रात मां ।
सुबह सवेरे तुलसी के फेरे मां लगाती है ।।

बुरे बक्त सब साथ छोड देते है जब ” दीक्षित” ।
तो हर मोड मां की दुआएं ही काम आती हैं ।।

— सुदेश दीक्षित

सुदेश दीक्षित

बैजनाथ कांगडा हि प्र मो 9418291465