परी के सात पुत्र
एक परी के सात पुत्र थे,
सातों अलग-अलग रहते थे,
एक पुत्र का नाम रवि था,
वह स्वभाव से एक कवि था.
जंगल उसको अच्छे लगते,
झर-झर झरने मोहक लगते,
एक-एक पर्वत पर घूमा,
फूलों के संग नाचा-झूमा.
एक दिवस ममी से बोला,
”मन करता है जंगल जाऊं,
झरनों के संग झर-झर गाऊं,
नदियों के संग मैं इठलाऊं”.
ममी बोलीं, ”अच्छा बेटा,
शाम को लेकिन घर आ जाना,
देर हुई तो घबराऊंगी,
व्यर्थ न मुझको आज सताना”.
रवि घूमने लगा मौज से,
दूर-दूर तक घूमा-भटका,
शाम ढले जब घर नहीं पहुंचा,
परी के मन में हुआ कुछ खटका.
सुबह हुई तो सोम ने पूछा,
”मैं भाई को ढूंढने जाऊं?”
ममी बोलीं, ”शाम ढले तो,
सोचना घर को कदम बढ़ाऊं”.
सोम रवि को ढूंढ रहा था,
इधर-उधर वह भटक रहा था,
शाम ढली और घिरा अंधेरा,
वहीं कहीं पर किया बसेरा.
अगले दिन मंगल जी बोले,
”अब तो मेरी ही बारी है”,
मंगल भी वापिस नहीं आया,
बुध ने बीड़ा स्वयं उठाया.
जब बुध भी वापिस नहीं आया,
वृहस्पति ने जिम्मा उठाया,
गुरु के पीछे शुक्र चले और,
शनि शुक्र के पीछे आया.
आठवें दिन जब रवि लौटा तो,
कोई भाई न उसे मिला था,
वह फिर चला ढूंढने उनको,
अगले दिन फिर सोम आया था.
मंगल-बुध-गुरु-शुक्र-शनि थे,
उनके पीछे आए भाई,
इसी तरह सप्ताह-महीना,
साल गए पर मिले न भाई.
अब भी वे सब घूम रहे हैं,
इक दूजे को ढूंढ रहे हैं,
जंगल-पर्वत-गांव-नगर में,
मिलने को वे घूम रहे हैं.
परी के सात पुत्र यानी सात दिन आपस में कभी नहीं मिलते, लेकिन आपस में गज़ब का मेल है. वे सब मिलकर एक सप्ताह बनाते हैं. अपनी-अपनी बारी पर सब आते-जाते हैं.
कुदरत वो जन्नत है, जिसका जर्रा जर्रा कयामत है,
कुदरत वो गज़ल है, जो ऊपरवाले की नियामत है.