लघुकथा

मेरी पत्नी की शादी

वैसे तो मैं अपनी पत्नी की शादी के बारे में सब कुछ भूलना चाहता हूं, पर आज मैंने एक चुटकुला पढ़ा और मुझे सब कुछ सिलसिलेवार याद आ गया. पहले वह चुटकुला सुनिए-

प्रेमी: डार्लिंग मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता. घरवाले मना कर रहे हैं.
प्रेमिका: घर में कौन-कौन है?
प्रेमी: एक बीवी और दो बच्चे.

मेरी बीवी की शादी हुई नहीं है, मैंने करवाई है, वो भी मुझसे शादी होने के महज छः दिन बाद.

हुआ यूं, कि किसान समुदाय के रीति-रिवाज से हुई इस शादी के बाद मेरे घर तीन युवक आए. इनमें से एक ने खुद को मेरी पत्नी का कजन बताया और इन युवकों की अच्छी खातिरदारी हुई. बाद में दो युवक तो मेरे साथ गांव देखने चले, लेकिन कथित ‘कजन’ घर पर रुक गया. कुछ लोगों ने उसे मेरी पत्नी के साथ देखा.

इसके बाद कुछ स्थानीय लोग मेरे घर पहुंचे और युवक को पीटना शुरू कर दिया. इसपर नई दुल्हन सामने आई और बताया कि युवक उसका कजन नहीं, प्रेमी है. दुल्हन ने बताया कि दोनों प्यार करते थे, लेकिन परिवारवाले इसके लिए तैयार नहीं थे और उसकी मर्जी के खिलाफ उसकी शादी करवा दी गई. वह तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी है और उसके पैरंट्स इस दुनिया में नहीं हैं.

मैंने अपनी पत्नी को उसके प्रेमी से शादी करने को कहा. उसके बाद पत्नी के बड़े भाई-बहन और उसके प्रेमी के पैरंट्स से बात कर उन्हें सारी बात बताई. छठे दिन ये सभी पमारा आए और सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में दोनों प्यार करने वालों की शादी हुई. मैंने उसके प्रेमी के साथ उसकी शादी करवाई और पूरे धूम-धाम के साथ उसे विदा किया. अगर मैं ऐसा नहीं करता तो तीन लोगों की जिंदगी बर्बाद हो जाती, अब हम सब खुश हैं.

मैं हूं सुंदरगढ़ जिले के बड़गांव ब्लॉक के पमारा गांव का 28 साल का वासुदेव टप्पू.

 

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “मेरी पत्नी की शादी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    sundar racha lila bahan .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको रचना बहुत दिलचस्प लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. टप्पू ने बहुत समझदारी दिखाई, वरना रोज की लड़ाई-मारामारी और हत्या या आत्महत्या ही इसका दुष्परिणाम होता है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    सचमुच टप्पू बहुत समझदार निकला, उसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है, वर्ना अब तक तो ऐसे मामलों में वीभत्स तरीके से हत्या, प्रताड़ना जैसी बातें ही सुनने में आती रही है. वाह! टप्पू जी, बहुत अच्छी मिसाल पेश की है.

Comments are closed.