मुक्तक
हुस्न जो इश्क से रू-ब-रू हो गया
ख़्वाब में जो दिखा हू-ब-हू हो गया
एक पल को नज़र से नज़र क्या मिली
सिलसिला चाहतों का शुरू हो गया
कुछ कदम आपका साथ क्या मिल गया
यूँ लगा मंजिलों का पता मिल गया
टूटते हौसलों को यकीं मानिये
ज़िन्दगी का नया हौसला मिल गया
गर्द छँटने लगी धुंध छँटने लगी
तीरगी ज़िन्दगी की सिमटने लगी
आपने प्यार से जो निहारा हमें
सच कहें बिन दवा पीर घटने लगी
है कठिन साधना एक विश्वास है
ज़िन्दगी का अलग एक अहसास है
इश्क भी बंदगी है यकीं मानिये
कीजिये तो सही ये बहुत ख़ास है
— सतीश बंसल