गीतिका/ग़ज़ल

क्या करे कोई !

अपने ही जब अपनों को छले तो क्या करे कोई!
शमां में जानकर परवाना जले तो क्या करे कोई!

वक्त़ तो बदल जाता है सबके लिए कभी न कभी;
इंतज़ार की लम्बी शाम न ढले तो क्या करे कोई!

महफिल में भी  तन्हाई सी लगने लगी है अकसर;
हर जगह अब तुम्हारी कमी खले तो क्या करे कोई!

मन्नतों के धागे भी हो रहे न जाने क्यों अब बेअसर;
रेखाओं को हथेली पे रह रह मले तो क्या करे कोई!

“कामनी”जिन्दा रहना ही सिर्फ ज़िन्दगी तो नहीं मन;
दर्द को ही जीएं वो लगा के गले तो क्या करे कोई!

कामनी गुप्ता ***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |