छंद : मधुशाला
विधान : 16/14=30,अंत 112/22 प्रथम, द्वितीय, व चतुर्थ चरण तुकांत,तृतीय चरण स्वतंत्र
आज सभी जन हुए लालची,छल कुदरत से करते हैं ।
छल कुदरत को बाद स्वयं ही,मरने से भी डरते हैं ।
भूल रहे है लोग हुआ छल,ये उनके ही जीवन से ।
पर्वत, वृक्ष , नीर दोहन कर,नित्य मृत्यु को वरते हैं ।