लघुकथा

हिस्सा

सत्तर वर्षीय बुजुर्ग महिला कई दिनों से अपने बड़े बेटे के साथ अथॉरिटी के चक्कर लगा रही है. आज भी वह अथॉरिटी के चक्कर लगा-लगाकर थककर चूर हो गई है और लेट गई है. वह रह-रहकर उस घड़ी को कोस रही है, जब उसका परिवार 28 साल पहले एक बच्चे को सड़क से उठाकर अपने घर लाया, पाला-पोसा, स्कूल में दाखिला करवाया और अपना मुंहबोला बेटा माना. बचपन में स्कूल में दाखिला कराने के लिए उसके फॉर्म में मां-बाप की जगह अपना और पति का नाम लिखवा दिया. बच्चा कुछ समय उनके साथ रहा, फिर किसी अनाथालय में इंतजाम हो गया, उसके बाद कभी उनके साथ रहता, कभी अनाथालय में. इसी तरह वह बड़ा हो गया. उसकी जरूरत और अपनी हैसियत के अनुसार वे उसकी आर्थिक मदद भी करते रहे. उसकी शादी भी हो गई है.

वह पिछले दो साल से प्रॉपर्टी में बराबर का हक मांग रहा है. प्रॉपर्टी में बराबर का हक लेने के लिए अथॉरिटी में भी एक फाइल में ऐप्लिकेशन लगा दी है, जिसमें युवक ने अथॉरिटी में दी गई ऐप्केलिशन में खुद को इनका गोद लिया हुआ बच्चा बताया है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “हिस्सा

  • लीला तिवानी

    नेक परिवार की नेकी का फायदा अब युवक अपनी बदनीयती के लिए उठा रहा है.

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