गीतिका/ग़ज़ल

बागों बुलाती है सुबह

रात पर जय प्राप्त कर जब, जगमगाती है सुबह।
किस तरह हारा अँधेरा, कह सुनाती है सुबह।

त्याग बिस्तर नित्य तत्पर, एक नव ऊर्जा लिए
लुत्फ लेने भोर का, बागों बुलाती है सुबह।

कालिमा को काटकर, आह्वान करती सूर्य का
बाद बढ़कर कर्म-पथ पर, दिन बिताती है सुबह।

बन कभी बुलबुल, कभी कोयल, चमन में डोलती
लॉन हरियल पर विचरती, गुनगुनाती है सुबह।

फूल कलियाँ मुग्ध-मन, रहते सजग सत्कार को
क्यारियों फुलवारियों को, खूब भाती है सुबह।

इस मधुर बेला में क्यों ना, ‘कल्पना’ उठ चल पड़ें
मन उतारें रंग जो, हर दिन दिखाती है सुबह।

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]