जिनको शीष झुका जीवन की, सरल ड़गर जाना हो जाएं
जिनको शीष झुका जीवन की, सरल ड़गर जाना हो जाएं।
मैने सच के कठिन मार्ग पर, कदम बढ़ाने की ठानी है।।
दंभ झूठ के प्रतिमानो का, वंदन करूँ नही हो सकता।
सत्ता को आराध्य बना कर, पूजन करूँ नही हो सकता।।
अपनी मंजिल मैने अपने, ही दम पाने की ठानी है…
जिनको शीष झुका जीवन की, सरल ड़गर जाना हो जाएं।
मैने सच के कठिन मार्ग पर, कदम बढ़ाने की ठानी है…
कदमों के नीचे काँटे हों, तेज तपन से पग जलता हो।
पथ पर घोर अँधेरे पसरें, या तूफ़ान प्रबल चलता हो।।
तेज वेग आँधीं में मैने, दीप जलाने की ठानी है…
जिनको शीष झुका जीवन की, सरल ड़गर जाना हो जाएं।
मैने सच के कठिन मार्ग पर, कदम बढ़ाने की ठानी है…
भय से या लालच से हरगिज, अपनी सोच नही बदलूँगा।
मैने अपने लिये चुनी जो, उसी ड़गर पर सदा चलूँगा।।
मैने कविताओं में जन की, पीड़ा गाने की ठानी है…
जिनको शीष झुका जीवन की, सरल ड़गर जाना हो जाएं।
मैने सच के कठिन मार्ग पर, कदम बढ़ाने की ठानी है…
है मेरा आह्वान कलम के, साधक और पुरोद्धाओं से।
आओ लड़ो एक जुट होकर, आड़म्बर के आकाओं से।।
मैने धर्मों के दामन से, दाग हटाने की ठानी है…
जिनको शीष झुका जीवन की, सरल ड़गर जाना हो जाएं।
मैने सच के कठिन मार्ग पर, कदम बढ़ाने की ठानी है…
सतीश बंसल
१६.०५.२०१८