गीतिका
मोहब्बत का गुजरा जमाना याद आ गया
संग तेरे सरेराह मुस्कुराना याद आ गया
पढ़ा करते थे किताबें तुम रौब में आकर
पन्ने पलटकर मुझे दिखाना याद आ गया
हुआ करती थी शीतल चांद की हसीं रातें
चरागों का जलाकर बुझाना याद आ गया
करते कहां थे तुम उन किताबों से गुफ्तगूं
बातों-बातों में हमको लुभाना याद आ गया
चली थी कलम जब तुम्हारे तसब्बुर में मेरी
लिखा तुमनें था गाना पुराना याद आ गया
था हाथों मे तोहफा तुम्हारे खूब सूरत सा
कुबूले मोहब्बत का वो फसाना याद आ गया
भूले कहां हम हमारी मोहब्बत आज भी
था गौरेतलब वो बीता जमाना याद आ गया
— प्रीती श्रीवास्तव