गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

मोहब्बत का गुजरा जमाना याद आ गया
संग तेरे सरेराह मुस्कुराना याद आ गया

पढ़ा करते थे किताबें तुम रौब में आकर
पन्ने पलटकर मुझे दिखाना याद आ गया

हुआ करती थी शीतल चांद की हसीं रातें
चरागों का जलाकर बुझाना याद आ गया

करते कहां थे तुम उन किताबों से गुफ्तगूं
बातों-बातों में हमको लुभाना याद आ गया

चली थी कलम जब तुम्हारे तसब्बुर में मेरी
लिखा तुमनें था गाना पुराना याद आ गया

था हाथों मे तोहफा तुम्हारे खूब सूरत सा
कुबूले मोहब्बत का वो फसाना याद आ गया

भूले कहां हम हमारी मोहब्बत आज भी
था गौरेतलब वो बीता जमाना याद आ गया

प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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