भारत का लाचार किसान
होना था बलवान जिसे,
वो कृषक बहुत लाचर हुआ।
सत्ता के गलियारे से,
पल-पल अत्याचार हुआ।।
पेट देश का भरता है,
पर परिवार अधपेटा है।
सेठ साहूकारों ने जिसका,
कफ़न तलक तो लपेटा है।।
हल की मुठिया थाम कर,
खेतों में रक्त जलता है।
फिर भी घर के कोने में,
चुपके से अश्रु बहता है।।
बिना दलाल के किसान,
मंडी में धक्के खाता है।
हप्तों भूखे रह किसान,
तड़प-तड़प मर जाताहै।।
जब तक रहती आस,
संघर्ष जीवन से करता है।
होता जब असहाय कृषक
स्वं मृत्यु वरण करता है।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045