बोल बम
सावन का महीना था। केसरिया रंग के झण्डे, केसरिया परिधान, कंधे पर काँवर लिए शिव भक्तों का हुजूम चला जा रहा था। ‘बोल बम’ और ‘हर-हर महादेव’ के नारों से आकाश गूँज रहा था। काँवर ढोने वाले शिवभक्त हर बात का जवाब ‘बम’ जोड़कर दे रहे थे।
सड़क किनारे शंकर बाबा एकत्रित सूखी लकड़ियों का गट्ठर उठाने का प्रयास कर रहे थे। उनकी जर्जर काया और गट्ठर का भारी वजन उनके इस प्रयास को बार-बार विफल कर रहे थे।
शंकर बाबा ने काँवरियों को आशा भरी नजरों से देखा। एक दो बार सहायता के लिए आवाज भी दी लेकिन भक्तगण ‘बोल बम’ करते हुए आगे बढ़ गए।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा