राजनीति

प्रदेश के राजनैतिक दलों की नैतिकता की पोल खुली

प्रदेश के सभी विरोधी राजनैतिक दल अब महागठबंधन बनाकर अपनी उपस्थिति तो दर्ज करा ही रहे हैं साथ ही साथ प्रदेश व केंद्र सरकार की नीतियों व निर्णयों पर एक होकर हल्ला भी बोलने लग गये हैं। लेकिन इस बीच कुछ ऐसी घटनायें घटी हैं जिसके कारण सभी विरोधी दलों की नैतिकता की पोल पूरी तरह से खुलती जा रही है। अभी यह महागठबंधन बेहद आरम्भिक अवस्था में है। लेकिन विपक्ष की हरकतों से यह साफ होता जा रहा है कि यह दल दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों व गरीबों तथा अल्पसंख्यकों के वाकई में कितने हमदर्द हैं, इन दलों की भारतीय संविधान व सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी संवैधानिक संस्थाओं के प्रति कितना मान सम्मान शेष रह गया है। जब देश की अदालतें इन दलों के पक्ष में फैसला सुनाती हैं तो वह अच्छी हो जाती हैं अगर नहीं सुनाती है तो बुरी हो जाती है। एक समय था जब इन दलों के कारण आंधी और तूफान आते थे, लेकिन आज इन दलों के दबाव के चलते पत्ता भी नहीं उड़ पा रहा है। यही कारण है कि आज ये सभी दल एकाध सफलताओं के कारण ही अभी से भारी अहंकार में आते जा रहे हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा पीएम नरेंद्र मोदी सहित समस्त भाजपा संघ को निशाने पर लेकर हल्ला बोल रहे हैं।

अभी हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक निर्णय के बाद उप्र के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास खाली करना पड़ गया। लेकिन सरकारी आवासों का मोह इन पूर्व मुख्यमंत्रियों के मन से अभी तक छूट नहीं पा रहा है भले ही इन लोगों ने अपने बंगले खाली कर दिये हैं। प्रदेश की राजनीति में सरकारी बंगलों का मोह और उस पर राजनीति की अलग कहानी रही है। लेकिन माननीय कोर्ट के आदेशों के कारण अब इन नेताओं को अपना घर खाली करना ही पड़ गया। ये सभी दल अभी तक भाजपा नेताओं को नैतिकता की खूब दुहाई देते रहे हैं। लेकिन बंगला विवाद के बाद वास्तव में इन दलों ने जिस प्रकार की छटपटाहट दिखलायी व बयानबाजियां की हैं उससे इन दलो के नेताओं की पोल खुल गयी तथा समाज में जो कहावत बोली जाती रही है कि सरकारी माल अपना को भी पूरी तरह से चरितार्थ कर दिया है। बंगला प्रसंग में इन दलों ने जो राजनीति की है उसके कई पार्ट तथा कहानियां उसमें समाहित होती चली गयी हैं। जब सरकारी बंगलों पर कोर्ट का आदेश आया तब सबसे पहले बीजेपी सरकार के पूर्व मुख्यमंत्रियों राजनाथ सिंह तथा कल्याण सिंह ने अपना आवास खाली करने का निर्णय करके इन सभी दलों के नेताओं को भारी दबाव में ला दिया।

सबसे पहले कोर्ट के आदेश के खिलाफ सपा के पूर्व मुखिया और मुलायम सिंह यादव अपना पक्ष रखने और बंगला बचाने के लिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास पहुँच गये तथा उन्होंने दो विकल्प सुझाये। लेकिन वे विकल्प अब पुराने हो चुके हैं। सपा मुखिया का कहना था कि उनके पास मकान नहीं है, पीएम मोदी ने अभी तक खातों में 15 लाख रूपये तो दिये नहीं, हम कहां रहने जायेंगे, सरकारी बंगलों को खाली कराने से देश में कौन-सा बदलाव आ जायेगा जैसे बहाने तलाशने लग गये। वही उनके सुपुत्र अखिलेश यादव जो महागठबंधन की राजनीति में अपने पिता को देश का प्रधानमंत्री बनाने का सपना देखने लगे हैं ने बड़ी ही चालाकी का खेल खेलते हुए आवास को खाली कराने का समय मांगा। दो साल का समय मांगना अखिलेश यादव की एक बहुत ही बड़ी चाल थी वह यह सोच रहे थे कि दो साल का समय मिल जायेगा तब 2019 में केंद्र में उनके दबाव वाली सरकार आ जायेगी अैार कोर्ट का आदेश रद्दी की टोकरी में चला जायेगा। प्रदेश के एक और मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने अपनी बीमारी का हवाला दे दिया। पूरे प्रकरण में सबसे आश्चर्यजनक और चैंकाने वाली दंबगई की राजनीति तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने की है।

इस समय राजनैतिक दृष्टिकोण से यदि किसी की धरातल से हालत बेहद खराब है तो बहन मायावती की है। उनके पास ले देकर एक सरकारी बंगला ही बचा था सब तो उनका लुट चुका है। आज संसद के दोनों सदनों में ही नहीं उप्र विधानसभा में भी उनकी उपस्थिति न के बराबर है। बहन मायावती केवल कर्नाटक में और उप्र के उपचुनावों में बीजेपी के रुक जाने पर सफलता का जश्न मना रही हैं और मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने लग गयी हैं। मायावती ने भी सरकारी बंगले को लेकर खूब नाटक खेला और उल्टा बीजेपी पर ही उनकी छवि को खराब करने का आरोप लगा दिया जबकि आज वास्तविकता यह है कि मायावती की अपनी इतनी ही ताकत शेष रह गयी है कि वे विपक्ष महागठबंधन के दौर में अपने वोट बीजेपी को हराने के लिये किसी दूसरे दल को दिलवा सकती हैं। अभी भी यदि सपा और बसपा अलग-अलग होकर चुनाव लड़ जायें तो बीजेपी की ही लहर चल पड़ेगी। बसपा सुप्रीमो मायावती ने बंगला खाली करने के नाम पर बहुत ओछी राजनीति की है जिसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

बंगला खाली करने से पहले मायावती ने सरकारी बंगले को कांशीराम यादगार विश्राम स्थल ही बना डाला है। इसकी आढ़ में उन्होंने दलितों व पिछड़ों का हमदर्द बनने का ढोंग रचा है। मायावती ने एक प्रकार से बेहद ही अनैतिक ढंग से सरकारी बंगले को लूट लिया है तथा उनके खिलाफ तो जनभावनाओं को आहत करने और सरकारी बंगले को बलपूर्वक लूटने का आपराधिक देशद्रोह तथा भ्रष्टाचार और कदाचार का मुकदमा दर्ज हो जाना चाहिए। उनका यह कृत्य पूरी तरह से अनैतिक और समाजविरोधी है। यह दलितों के साथ और मान्यवर कांशीराम जी के खिलाफ भी एक बहुत बड़ा धोखा किया गया है।
मायावती की नैतिकता की पराकाष्ठा तो उस समय गटर में चली गयी थी जब अपनी सफाई देने के लिए उन्होंने मीडिया को बुलाया और यह साबित करने के लिए ही कि यह बंगला कांशीराम का विश्राम स्थल ही था। उन्होंने समस्त मीडिया को सरकारी बंगला दिखाया भी। उस समय पत्रकार वार्ता में बसपा सुप्रीमो ने जिस प्रकार की भाषा शैली का प्रयोग बीजेपी के लिए किया है उससे यह साफ पता चल रहा है कि उनके मन में कितनी दुर्भावना और बीजेपी से बदला लेने की कितनी छटपटाहट और व्याकुलता भरी हुई हैं।

मायावती की भाषा बेहद विकृत होती जा रही है। इसके कई कारण भी है। बसपा सरकार में चीनी मिल घोटालों की सहित बसपा राज के कई घोटालों की जांच शुरू हो रही है तथा कुछ की और शुरू होने जा रही है। नोटबंदी के बाद मायावती का पैसा डूब चुका है। चुनाव लड़ने के लिये काफी धन चाहिए, रैलियां करने के लिये व भीड़ बुलाने के लिये धन चाहिए। काफी दबाव के चलते उन्हें अपने पुराने सबसे खतरनाक दुश्मनों से दोस्ती करनी पड़ रही है। मायावती के नये दोस्त घोटालों और कई प्रकार के अपराधों में आकंठ डूबे हैं। सरकार योगी आदित्यनाथ की है, देश में मोदी लहर चल रही है। यही कारण है कि आज मायावती जिनकी राजनीति कभी मोदी के सहारे ही आगे बढ़ी थी और बीजेपी ने उनके जीवन की रक्षा की थी, आज वही मायावती बीजेपी को हराने के लिये छटपटा रही है। उसी आढ़ में मायावती गलती पर गलती करती जा रही हैं।

बंगला खाली करने के दौरान सभी दलों के नेताओं ने यह बताने का असफल प्रयास किया कि वह बेहद गरीब है तथा उनके पास रहने को मकान नहीं हैं। यह बेहद घटिया और नायाब तरीका था। बसपा सुप्रीमो मायावती के बंगले की कहानी पूरे प्रदेश में चर्चित हो चुुकी है। सपा के पूर्व मुखिया मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के पास भी अपनी काफी संपत्ति है। अगर इन सभी नेताओं को गरीब मान लिया जाये तो भी अब इन सभी नेताओं ने चुनाव आयोग के समक्ष हलफनामे में अपनी संपत्ति के ब्यौरे का जो विवरण दिया है उसकी भी अब जांच की जानी चाहिए जिससे सब दूध का दुूध और पानी का पानी हो जायेगा कि दलितों और पिछड़ों के ये तथाकथित नेता वास्तव में बेहद गरीब हैं या फिर देश की जनता व सरकारी धन के लुटेरे।

मृत्युंजय दीक्षित