गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

रंजो-गम हैं, बहुत नफरत भी है
क्या कहीं थोड़ी मुहब्बत भी है?
किसी को दे सके दो पल का सुकूं
तेरे लफ्जों में वो ताकत भी है?
क़लम को फेंक! कटार से ही लिख
क़लम की क्या कोई कीमत भी है?
हुये तक़सीम दिल, ज़माना हुआ
क्या अजब चीज सियासत भी है
सिर्फ झोली में खिलौने ही नहीं
लाश के नेफे में एक ख़त भी है
खंडहर से कहानियां चुनना
मेरा शगल भी है, आदत भी है
इसे दोज़ख बनाने वालों, सुनो
इसी दुनियां में ही जन्नत भी है
नीरज नैन, कुटिल , दगेबाज  सी
कितनी खुदगर्ज उल्फ़त भी है
नीरज सचान झांसी

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email [email protected]

3 thoughts on “ग़ज़ल

  • नीरज सचान

    आभार

  • नीरज सचान

    Thnx

  • विजयता सूरी

    Waaah waah waaah

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