कविता

तब बचेगी बेटी पढेगी बेटी

अब कैसे बच पायेगी ओ, अब कैसे पढ़ पायेगी
दूषित मन के मेलों में, अब कैसे चल पायेगी।

इस लंका में रावण सारे, सब कामी क्रोधी लगते है
उस रावण की मर्यादा थी, सब यहां पे भोगी लगते है
वो चोर लुटेरा बेसक था, दुराचार उसने न किया।
चन्द्रहास हो जिसके पीछे, तभी यहां चल पायेगी।

अब नर के जंगलों में, घनघोर अंधेरा छाया है।
अब बुझे यहां दीपक सारे, सब ने नूर छुपाया है।
बजबजा रही गलियां सारी, हर कूचे में बू फैली है
बेटी जब मनु बनेगी, तभी यहां बढ़ पायेगी।

वजीर को क्यों कोस रहे, कमी यहां अपनी देखो।
कैसे सीमा पार गई, नजर यहां अपनी देखो
तुम पढ़ो यहां तुम बढ़ों यहां, डरने की कोई बात नही
ये भाव दिलों में जब होगा, तभी यहां पढ़ पायेगी।

तब बचेगी बेटी पढेगी बेटी जब दलदल मिट जायेगे
मानव के अंदर के दानव, जब सारे पिट जायेगे।
चंदन के बागों से जब, बबूलों को काटा जायेगा
लताएं मोगरा वाली सारी, तभी यहां चढ़ पायेगी।

राज कुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782