कविता

पत्थर ही चला दीजिए

कब से दौड़ रहा हूं पीछे
कुछ अब तो बता दीजिए!
गुस्ताखी ये मेरी है तो
पत्थर ही चला दीजिए
क्या करेगें जी के,
इस उजडे़ दयार में –
दर्दे जिगर को मेंरे
जहर ही पिला दीजिए ।
कब से पीछे तेरे…..

यादों के जंगल में
भटकती रूह मेंरी है –
गर मुश्किल मेल हो तो
मौत से ही मिला दीजिए ।
लोग कहते हैं पहले ऐ
सोनें की चिंडि़या थी
है जूस्तजू मेंरी यही
फिर पंख फैला दीजिए ।।
कब से पीछे तेरे…..

राजकुमार तिवारी राज

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782