लघुकथा

पलटू

रंजन की गुप्ता जी पर नज़र पड़ी। उनके बेटे ने फाइव स्टार होटल की अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर अपना रेस्टोरेंट खोलने का निश्चय किया था। इस बात से गुप्ता जी नाराज़ थे। मुंह देखी बात करने के आदी रंजन ने उन्हें देखते ही संवेदना दिखानी शुरू कर दी।
“अब क्या कहा जाए आज की पीढ़ी को। सोंचने विचारने की तो ज़रूरत ही नहीं समझते। हर समय हवा में किले बनाते रहते हैं।”
रंजन की बात सुनते ही गुप्ता जी अपने बेटे के बचाव में आ गए।
“मैं शुरुआत में उसके फैसले से खुश नहीं था। लेकिन समीर ने सब अच्छी तरह से सोंचकर ही फैसला लिया है।”
गुप्ता जी का मूड देख कर रंजन फौरन बोला।
“हाँ ये तो है। समीर बहुत समझदार है। मेहनती भी है। तभी तो इतना आगे तक बढ़ पाया। वह अपना रेस्टोरेंट भी अच्छे से चलाएगा।”

*आशीष कुमार त्रिवेदी

नाम :- आशीष कुमार त्रिवेदी पता :- C-2072 Indira nagar Lucknow -226016 मैं कहानी, लघु कथा, लेख लिखता हूँ. मेरी एक कहानी म. प्र, से प्रकाशित सत्य की मशाल पत्रिका में छपी है