ग़ज़ल
रूठा रूठा रहता है जानम, कुछ बात बताये तो
हम उसे (उन्हें)मनाये कैसे, साजन पास कभी आये तो |
है अभिमानी ताकत के मद में, करता केवल मन का
धैर्य रखेगा क्या वह गर, कोई उसको समझाए तो ?
नेताओं में ज्यादा हैं शातिर, कुछ हैं सीधा सादा
भोले साधु करेंगे क्या, शातिर उनको नचवाये तो ?
माना, रूबरू लड़ाई में मुझसे जीत नहीं सकता
पहले ये बतला दो, उसने छुपकर तीर चलाये तो ?
अब की बार चलाना मुश्किल, अगर विपक्षी चौकन्ना
भोली भाली जनता को गर बहकाकर भड़काए तो |
किसकी हार और किसकी होगी जीत, नहीं अब निश्चित
विश्वासी साथी जब गैरों को भी राज़ बताये तो |
खुद और न औरों को खाने देने का वादा मुस्किल
न निभाने का वादा आसान, अगर खुद भी खाए तो |
भ्रष्ट भी रहे और जांच भी न कराये, कैसी विद्या
कानून करे जो पर्दाफास, उसे ख़त्म कराये तो |
काला धन पंगु नहीं ‘काली’, है सादा रुपया जैसा
काले की शक्ति अधिक है, उससे सरकार चलाये तो |
कालीपद ‘प्रसाद’