बलात्कार एक ऐसा अपराध जिसके बारे में सुनते ही हमारे मन में खौफ और आक्रोश दोनों पैदा हो जाते हैं। खौफ तो यह सोचकर कि आने वाला समय कितना भयावह होगा और आक्रोश यह सोचकर कि आज इंसान नीचता की सारी हदें पार करता जा रहा है, अपनी माँ बहनों को भी रौंदता जा रहा है। जब भी देश में ऐसी घटना घटती है तो जनता हाथों में मोमबत्ती उठाये सड़कों पर आ जाती है कि सरकार ठोस कदम उठाए, कड़े से कड़े कानून बनाये लेकिन दो चार दिन बाद सब कुछ भूल जाती है।
बलात्कार का जिक्र आते ही एक बात कही जाती है कि पुरुषों को अपनी सोच बदलनी होगी लेकिन औरतें अपने गिरेबान में नहीं झांक पाती हैं। वो नहीं समझ पाती हैं पुरुषों की सोच के साथ साथ उन्हें भी अपनी सोच अपना पहनावा बदलना होगा वरना हमें समाज सुधार की आस छोड़ देनी चाहिए। आज औरतें खुद को खुद ही उपभोग की वस्तु की तरह पेश करती हैं। औरतें पुरुषों की बराबरी और आधुनिकता के नाम पर नग्नता को बढ़ावा देती जा रही हैं। नग्नता का जिक्र करते ही औरतें चिल्लाने लगती हैं कि हम क्या पहनेंगी, क्या नहीं पहनेंगी, इसका फैसला हम लेंगी। वहीं दूसरी और कुछ बुद्धिजीवी सवाल करते हैं कि छोटी बच्चियों के हर रोज बलात्कार हो रहे हैं वो बच्चियां कौनसा अंगप्रदर्शन करती हैं। उनका सवाल भी जायज पर वो समस्या की गहराई में नहीं जाते हैं।
हवस एक नशा है जिसके वशीभूत होने पर इंसान को कुछ समझ नहीं आता है, बस उसे एक ही चीज सूझती है कि कैसे भी अपनी कामाग्नि अपनी हवस को शांत करनी है। इसके लिए वो ऐसा शिकार तलाशता है जो उसे आसानी से मिल जाये। हमारी अबोध बालिकाएं, कमजोर लड़कियां/महिलाएं उस हवस के भेड़िये का आसानी से शिकार बन जाती हैं। औरत के द्वारा खुद को उपभोग की वस्तु की तरह पेश करने के कारण पुरुष मन में भावनाएं जागृत होती हैं। औरत के अर्द्धनग्न पहनावे के कारण कामाग्नि सुलगने लगती है और इस कामाग्नि में घी का काम टीवी, मोबाइल, इंटरनेट पर उपलब्ध पोर्न साइट कर देती हैं। जिसके कारण पुरुष का खुद पर नियंत्रण नहीं रहता और वो कामाग्नि के वशीभूत हो जाता है। इस कामाग्नि को शांत करने के लिए वो शिकार तलाशता है और हमारी अबोध बच्चियां, कमजोर महिलाएं ठीक उसी तरह आसानी से उसका शिकार बन जाती हैं जिस तरह से एक निर्बल आदमी एक लुटेरे का शिकार बन जाता है।
इसीलिए हमारा पहनावा बहुत अहमियत रखता है क्योंकि हमारे द्वारा किये गए अंगप्रदर्शन से पुरुषों की कामाग्नि भड़कती जिसका खामियाजा हमारी माँ, बहनों को भुगतना पड़ता है। औरतें अक्सर कहती हैं कि औरतें तो कभी किसी पुरुष का बलात्कार नहीं करती जबकि पुरुष अर्द्धनग्न घूमते रहते हैं। असलियत में सच्चाई यह है कि एक औरत में एक पुरूष की तुलना में 8 गुणा कामाग्नि होती लेकिन एक औरत में एक पुरुष की तुलना में संयम 18 गुणा होता है। इसी संयम के आधार पर औरतें खुद को पुरुषों के मुकाबले शांत रख पाती हैं। आजकल बहुत सी लड़कियां और महिलाएं सोचती हैं कि छोटे कपड़े पहनने से वो अधिक कामुक नजर आएंगी, जो कि उनके मन का वहम है क्योंकि आज भी दुनिया का सबसे कामुक पहनावा साड़ी है। आधुनिकता, कामुकता और सुंदरता पहनावे से झलकती ना कि नग्नता से झलकती है। दुनिया का एक कड़वा सच यह भी है कि यदि कोई महिला या पुरुष खुद को पूर्ण रूप से नग्न होकर आईने में देखे तो उसकी खुद की नजरें भी शर्म से झुक जाएंगी। आज चंद पैसों और झूठी शान के लिए लगभग हर फिल्म में, हर नाटक में और हर विज्ञापन में औरतें खुद को उपभोग की वस्तु की तरह ही इस्तेमाल कर रही हैं। आज के समय में अधिकतर लड़कियों और महिलाओं की आदर्श रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू जैसी महान आत्माएं नहीं बल्कि पैसों और नाम के लिए कास्टिंग काउच से गुजरने वाली हीरोइन और सन्नी लियोन जैसी पोर्न स्टार हैं।
अब आप खुद ही सोचिए आज के इस परिवेश में औरत के खुद को बदले बिना केवल पुरुषों की सोच बदलने से क्या बलात्कार की घटनाएं रुक जाएंगी। दूसरे शब्दों में कहूँ तो जब तक औरत आधुनिकता के नाम पर नग्नता को बढ़ावा देती रहेगी तब तक परिस्थितियों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। जिस दिन खुद औरत नग्नता का परित्याग कर शालीनता को अपना लेगी उसी दिन से बलात्कार जैसी घटनाएं लगभग बंद हो जाएंगी।