लघुकथा – पौधा
” रमा ,देखो मैं बाहर के लिए एक पौधा लाया हूँ । तुम रोज़ पानी देना । मैं भी दूँगा जब घर पर रहूँगा “।
” ये क्या श्याम मुझे काम से फुर्सत ही कहाँ की मैं ये कर सकूं । खैर सन्नी दे देगा पानी “।
कुछ दिन बाद…….
” तुम लोगो ने पानी नही दिया पौधे को ,मैं तो शहर के बाहर था । देखो कैसे सुख गया ।
श्याम ने थोड़ा दे दिया और फिर दूसरे शहर चला गया।
कुछ दिन बाद …………..
अरे वाह !! रमा तुमने तो इस बार मेरे पौधे का बहुत ध्यान रखा ।
देखी फूल आने वाले हैं” ।
पर रमा ओर सन्नी मना कर देते है कि उन्होने पानी नही दिया ।
श्याम को आश्चर्य हुआ बोला ” तुम दोनों ने नहीं दिया तो किसने दिया आज मैं घर पर हुँ तो देखता हूँ ” ।
दोहपर के तीन बजे श्याम देखता है एक आदमी उसकी कार से उतर कर उस पौधे को पानी देता है ।कुछ देर रुक कर वहां से मुस्कान लिए चला जाता है ।
अगले दिन भी वही होता हैं।
तीसरे दिन श्याम उस आदमी के सामने गया ” महाशय जी एक बात मुझे परेशान कर रही है आप की आज्ञा हो तो …..।।
” हाँ, हाँ जरूर …….।।
” आप अपना कीमती समय इस पौधे को क्यो देते है “??
आदमी कुछ देर ठहर मुस्कुरा कर बोला ” एक दिन जब यहां से मैं गुज़र रहा था तब देखा कि ये पानी के अभाव में मर रहा है तो मेने इसको पानी देना शुरू कर दिया । मैं इसको बढ़ने , फलने , फूलने में प्यार से पानी और उचित देखभाल कर रहा हूँ । एक दिन जल्दी ही ये मेरे साथ दुसरो को ठंडी छाया ,फूल,फल देगा ।
इसको हमसे कुछ नहीं चाहिए। बस समय पर पानी और कुछ देखरेख ही चाहिए बदले में ये हमको क्या क्या नही देगा तुमको सब मालूम है।
हाँ यही बात हम मनुष्यों के लिए भी लागू होती है ” ।
हर रिश्ते को प्यार का पानी और स्नेह की देखरेख चाहिए।फिर देखो हमारा हर रिश्ता इस पौधे की तरह ही कितना फलेगा फूलेगा “”।।
— सारिका रावल
bahut achhi laghu katha .