कलम की मार
कविता – कलम की मार से मचा हाहाकार
सबकी अपनी सोच है,सबका अपना मन।
लगती हो लगे बुरी,पर हम लिखते जीवन।।
हम लिखते जीवन,किसी को क्यों चुभता है।
चुभन कलम की तेज,जैसे भाला चुभता है।।
भाला चलता है ऐसे,जैसे धरती पर चलता है हल।
जब हल चलेगा दिल से,तब खूब उगेगी फसल।।
फसल उगेगी जब,फूल संग कांटे भी होंगे।
किसी को लगे बुरा तो लगे,कलम के चांटे तो होंगे।।
चांटों मे सच्चाई ,सच्चाई से क्यों डरता है।
जो झूठ से लुटे वाहवाही,बस वो ही डरता है।।
डरता है जो डरे, कलम कहाँ डरती है।
छलता है जो छले, कलम तो यु हीं चलती है।।
चलती है जब कलम, कोई भी सामने ना आता।
बदलता रंग जो गिरगिट,वो पहले छुप जाता।।
छुपना हुनर चूहों का,वो कभी भी बाज ना आता।
चलना हुनर कलम का,भला वो कैसे रुक जाए।।
मेरा परिचय
नाम – नीरज त्यागी
पिता का नाम – श्री आनंद कुमार त्यागी
माता का नाम – स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी
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ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)